पाकिस्तान के ऐबटाबाद शहर में अमरीकी कार्रवाई में लादेन के मारे जाने से ठीक एक साल पहले भी वो पाकिस्तान में रह रहे कुछ लोगों के घर दावत पर गए थे.
बिन लादेन की मौत के एक साल बाद दो लोगों ने बीबीसी को बताया कि कैसे वर्ष 2010 की गर्मियों में अल कायदा नेता उनके मेहमान बने. हालांकि इन लोगों का दावा है कि इन्हें अंदाजा भी नहीं था कि उनकी दावत पर बुलाया गया मेहमान दुनिया का सबसे वांछित व्यक्ति है.
जबकि लादेन की मौत को एक साल होने पर भी पाकिस्तान और अमरीकी अधिकारी यही कह रहे हैं कि अल कायदा प्रमुख पांच साल तक सबसे छिप कर ऐबटबाद में रहते रहे और उन्होंने एक बार भी अपने घर को नहीं छोड़ा.
लेकिन लादेन को वर्ष 2010 में जिस इलाके में देखा गया, वहां चरमपंथियों के खिलाफ कई सैन्य अभियान चलाए गए हैं. वहां सैनिक तैनात रहे हैं जिन्हें हरदम चौकन्ने रहने की हिदायत होती है. साथ ही वहां आने जाने वाले लोगों पर नजर रखने के लिए दर्जनों सुरक्षा चौकियां हैं.
ऐसे में सवाल उठता है कि यहां हुई इन गतिविधियों की सुरक्षाकर्मियों को भनक कैसे नहीं लगी?
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पश्चिमोत्तर पाकिस्तान के वजीरिस्तान इलाके में इस कबायली परिवार के लगभग छह लोग रात के खाने पर एक ऐसे मेहमान का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे जिसकी पहचान से वे परिचित नहीं थे.
उन्हें इस मेहमान के आने की खबर कई हफ्तों पहले ही दे दी गई. उनके मुताबिक ये खबर एक अज्ञान लेकिन “अहम आदमी” ने दी.
उन्हें किसी तरह के नाम नहीं बताए गए, मेहमान के आने की खबर भी कुछ घंटों पहले ही दी गई.
बातचीत के लिए राजी हुए एक परिवार के बुजुर्ग ने बताया, “बड़े बड़े पहियों वाली एक दर्जन जीपें हमारे घर के सामने रूकीं. वे अलग-अलग दिशाओं से आई थीं.”
अजनबी मेहमान
एक गाड़ी बरामदे के पास तक आई और उसकी पिछली सीट से लंबे कद और दुबला पतला दिखने वाला व्यक्ति उतरा. वह लंबा सा लबादा और सफेद पगड़ी पहने हुआ था.
मेहमान का इंतजार कर रहे लोगों को अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हुआ. उनके सामने कोई और नहीं, बल्कि ओसामा बिन लादेन थे. दुनिया के सबसे वांछित आदमी.
बुजुर्ग ने बताया, “हम तो हक्के बक्के थे. हम तो सोच भी नहीं सकते थे कि वो आदमी कभी हमारे घर आएगा.”
वो गाड़ी से उतरने के बाद कुछ देर तक वहीं खड़े हुए हाथ मिलाते रहे. बुजर्ग ने बताया कि उन्होंने लादेन के हाथ को चूमा और सम्मान देते हुए उसे अपनी आंखों से स्पर्श किया.
इसके बाद लादेन ने अपने एक साथी के कंधे पर हाथ रखा और वो मेहमानों वाले कमरे में चले गए. गांव के लोग उस कमरे में उनके पीछे नहीं गए. लादेन के कुछ अपने लोग ही उनके साथ रहे.
लादेन को दावत
लादेन की अचानक मौत के बाद उनके एक और मेजबान ने अपने नजदीकी दोस्तों को बताया कि कैसे लादेन उनसे मिलने आए. इसी तरह मुझे भी इस बारे में जानकारी मिली.
मान मनोव्वल के बाद मैं ऐसे दो लोगों से बात कर पाया जो लादेन से मिले. दोनों ने अपनी पहचान जाहिर न करने की गुजारिश की.
वे बताते हैं कि उन्होंने लादेन ने साथ लगभग तीन घंटे गुजारे. इस दौरान अल कायदा नेता ने नमाज पढ़ी, आराम किया, चिकन करी और चावल खाए जो सब उनके और उनके साथियों के लिए पकाए गए थे.
इस दौरान लादेन के मेजबानों में से किसी को भी वो परिसर छोड़ने या उसके अंदर किसी को आने की अनुमति नहीं थी. मुख्य दरवाजे, दीवारों और छत पर हथियारबंद लोग निगरानी कर रहे थे.
उस वक्त गार्ड्स से थोड़ी सी कहासुनी भी हुई जब मेजबानों में से एक ने कहा कि उनके 85 वर्षीय पिता को भी लादेन को देखने की अनुमति दी जानी चाहिए.
उन्होंने कहा, “इसे आप उनकी मरने से पहले आखिरी इच्छा ही मान लें.” यह संदेश ओसामा बिन लादेन तक भी पहुंचाया गया और वो उस बुजुर्ग से मिलने को राजी हो गए.
‘लादेन को दुआएं दी’
चार हथियारबंद लोग उस व्यक्ति के साथ उनके घर गए और उनके पिता को लेकर आए. घर में अंदर पहुंचने के बाद ही बुजुर्ग को ओसामा बिन लादेन की मौजूदगी के बारे में बताया गया.
उन्होंने बताया कि इस बुजुर्ग ने लादेन के साथ 10 मिनट गुजारे, उनकी तारीफ की, उन्हें दुआएं दीं और उन्हें कबायली संघर्ष पर अपनी सलाह भी दी. ये सब बातें उन्होंने अपनी मातृभाषा पश्तो में कहीं जिसे लादेन नहीं समझ सकते थे.
उनका कहना है कि इसी कारण लादेन और उनके साथी बुजुर्ग की बातों पर मुस्करा रहे थे.
बिन लादेन और उनके साथी जिस तरह आए थे, उसी तरह वे वहां से निकले. वे अलग अलग दिशाओं में गए जिससे उनके मेजबानों को पता न चल सके कि लादेन की गाड़ी किस दिशा में गई है.
अपने घर लादेन के आने की बात तो इन लोगों ने खुल कर बताई लेकिन इस बात पर चुप्पी बनाए रखी कि वो “अहम व्यक्ति” कौन था जिसके कहने पर उन्होंने अपने घर लादेन को दावत दी.
उन्होंने यह बताने से भी इनकार कर दिया कि लादेन के साथ और कौन-कौन लोग उनके घर आए.
पाकिस्तानी लोग हमेशा यही कहते रहे हैं कि उन्हें ओसामा बिन लादेन के वहां होने की कोई खबर नहीं थी. अल कायदा प्रमुख को किसी तरह की मदद देने से भी वे इनकार करते हैं.
इस बारे में भी सवाल उठते हैं कि लादेन की इस यात्रा की योजना किसने बनाई, इसका मकसद क्या था, सबसे अहम तो ये कि इस तरह असंदिग्ध लोगों के यहां वो कितनी बार गए होंगे.
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